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कांवड़ यात्रा में निहित होती है गहन आस्था
Riverman of India
Aug 14 2024
वहां से आने के बाद कांवड़ के सभी सामानों को खोला जाता है। कांवड़ को घर-परिवार की किसी लड़की से खुलवाने की शुरूआत की जाती है। कांवड़ को खोलने के बाद परिवार के सदस्यों व बच्चों को उनका सामान दे दिया जाता है। कांवड़ से खोला गया कुछ सामान तथा साथ लाए गए चबौनी व मुरमुरों के प्रसाद के साथ मिलाकर उन घरों में भिजवाया जाता है जिनके घर से कोई कांवड़ लेने नहीं गया था। कुछ प्रसाद अपने रिश्तेदारों को भी भिजवाया जाता है। इसके बाद कांवड़ में सूत की रस्सी को बांध कर तथा कांवड़ को कपड़े में लपेटकर टांड़, खुंटी या फिर उंचे स्थान पर रख दिया जाता है।
कांवड़ को एक नियम यह भी है कि कांवड़ का जोड़ा मिलाना पड़ता है, अर्थात कांवड़ दो लानी होती हैं, क्योंकि कांवड़ वर्ष में दो बार भागन अर्थात फरवरी-मार्च व सावन अर्थात जुलाई-अगस्त में लाई जाती है। अगर कांवड़ को सावन में लाया गया है तो उसका जोड़ा भी सावन में ही मिलाना होगा अर्थात दूसरी कांवड़ भी अगले या उससे अगले सावन में ही लानी होगी। ऐसा जरूरी नहीं है कि जोड़ा लगातार दो वर्षाें में ही मिलाना होता है, इसको एक-दो या उससे अधिक वर्षाें का अंतर रखकर भी मिलाया जा सकता है। कुछ कांवड़ यात्री एक बार में ही दोनों कांवड़ ले आते हैं, जिससे कि उनको दोबारा नहीं जाता होता है।
कांवड़ लेने के लिए कुछ लोग अपनी इच्छा पूरी होने पर जाते हैं, कुछ अपने द्वारा लिए हुए संकल्प के लिए जाते हैं, कुछ अपनी इच्छापूर्ति के लिए जाते हैं, कुछ अपने परिवार के संकल्प के लिए जाते हैं और कुछ निस्वार्थ भी कांवड़ यात्रा पर जाते हैं।
कांवड़ यात्रा के इस स्वरूप को कितने लोग जानते हैं नहीं पता, लेकिन अगर कांवड़ यात्रा का संपूर्ण ज्ञान कर लिया जाए तो शायद ही काई कांवड़ यात्रा को भला-बुरा कहे। हो सकता है कि कुछ विकृतियां आई हों लेकिन किसी की गलती के कारण एक संपूर्ण समाज की धार्मिक आस्था को ही गलत साबित करना सही नहीं है। यह आस्था ही है जिसके भरोसे कांवड़ यात्री इतना पैदल चल पाते हैं।
रमन कांत
रिवरमैन आॅफ इण्डिया
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